चलो कुछ ऐसे कदम उठाएं
हर साज़ पर नया तराना बने
लहू से तो सीचें हैं धरती हमने
चलो सासों से ज़िन्दगी सिंची जाये
बहत हो चूका बिस्तर पे,
सुबह का इंतज़ार
चलो आज ऐसा करें,
सूरज को जगाया जाये
मैं यह नहीं कहता के वो दुनियां,
कभी आयेगी नहीं
पर नयी दुनियां के लिए
कुछ तो किया जाये
छोड़ रखे हैं पेड़ों पे ,
फल पकने के लिए
चलो आज यूँ करें बगीचे को संवारा जाये ................
वो दिन अब आगये हैं यारों
के चौखट से निकले कदम
और चौराहे पे हक माँगा जाये !!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2012
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