पलट कर देखा,
आज फुर्सत के लम्हों में
ज़िन्दगी की किताब को
तो मिले मुझे कुछ पन्ने
तेरे अल्फाजों से लिखे हुए
यादों की धुल उन पर चढ़ चुकी थी
वक़्त की अंधी के साथ लड़ते हुए वो पन्ने
कुछ कमज़ोर से होगये थे
ज़हन की तिजोरी में बंद उस किताब को
जीने के बाद कुछ लम्हे
फिर से वहीँ रख दिया
ज़हन की महफूज़ तिजोरी में !!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011
No comments:
Post a Comment