बेतहाशा आती आवाजों ने
मुझे अपनी और खिंचा
तब मैंने घर की छत से
नज़ारा किया एक ऐसे असमान का
जिसे रंगबिरंगी रौशनी जगमगा रही थी
रात का अँधेरा,
कमज़ोर हो रहा था
अचानक मेरी ऑंखें
फलक से निचे हटी
और मैंने देखा
मेरे घर के बगल में
एक बस्ती थी
जहाँ,
चुल्ह्हे ठन्डे
और इन्सान मायूस सा पड़ा था !!!!!!!!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011
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