एक पुराने तस्वीर को फ्रेम में सजाकर
टांग दिया है दीवार पे
आते-जाते देख्लेता हूँ
याद करलेता हूँ एक भूले से रिश्ते को
अनकही सी रहगयी जो मेरेलिए
अनचाही सी थी शायद,
हमेशा से तुम्हारे लिए
खैर, पुरानी बातों को छोडो इनसब में रखा ही क्या है
सुना है तुमने कोठी बड़ी अछि बनवाई है ?
मेरी हवेली के रंग तो,
कब के उतर गए
पुरानी दीवारें भी ;अब जवाब देने लगी हैं !!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011
No comments:
Post a Comment