अपने सुरूर में हवा बह रही थी
कलियाँ शर्म से
सर झुकाए खड़ी थी
कोयल बैठी थी डाल पे ज़रूर
पर उसके गले में,
आवाज़ नहीं था
फलक खुशरंग दिखने लगा था
ज़मीं मदहोश होने चली थी
सच बताना,
क्या तुम कल उस रास्ते से गुजरी थी ?
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi
कलियाँ शर्म से
सर झुकाए खड़ी थी
कोयल बैठी थी डाल पे ज़रूर
पर उसके गले में,
आवाज़ नहीं था
फलक खुशरंग दिखने लगा था
ज़मीं मदहोश होने चली थी
सच बताना,
क्या तुम कल उस रास्ते से गुजरी थी ?
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