Thursday, May 3, 2012

सच बताना !

अपने सुरूर में हवा बह रही थी

कलियाँ शर्म से

सर झुकाए खड़ी थी

कोयल बैठी थी डाल  पे ज़रूर

पर उसके गले में,

आवाज़ नहीं था

फलक खुशरंग दिखने लगा था

ज़मीं मदहोश होने चली थी

सच बताना,

क्या तुम कल उस रास्ते से गुजरी थी ?


Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi

No comments:

Post a Comment