Saturday, May 5, 2012
कुछ देर और ठहर जाओ
कुछ देर यूँ ही रहने दो
एहसास मेरे होने का
कई दिनों से सांस तलक नहीं मिली है मुझे !
कुछ देर यूँ ही रहने दो रवानगी को
रुकी हुई सी, ठहरी हुई सी ज़िन्दगी
बहत डराती है हमे !
कुछ देर यूँ ही रहने दो
तुम्हारे आँचल का साया मुझपे
के मेरा वजूद तो बस इसीसे मिलता है
तुम्हारे होने या न होने से,
सच में बहत फर्क पड़ता है
पास होती हो तो
हर सांस को मायने मिलते हैं
दूर हो जाती हो तो लगता है
जैसे ज़िन्दगी चलिगायी !
बड़ी दिनों बाद आई हो,
मिलने मुझसे
कुछ देर और ठहर जाओ
सदियों से बेजान पड़ा था मैं
चाँद लम्हे मुझे भी जीने दो!!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2012
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