कुछ दिन होगये ढूंड रहा हूँ
वो अल्फाज़ और मिसरे
तेरा ज़िक्र करते हुए जिसे में
गुनगुनाया करता था
यहीं तो रखा था कहीं !
ख्यालों के किसी कोने में
पहले हर वक़्त मिला करते थे
अब कुछ दिन होगये मुलाकात नहीं हुई
धीरे धीरे उम्र बढ़ रही है
धीरे धीरे धुंदली हो रही है
तेर याद उम्र के साथ !!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011
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