आज भी तकिये तले
इक किताब के सफहों के दरमियाँ
उस फूल को सजाये रक्खा है मैंने
सूख ज़रूर गयी है लेकिन
आज तलक मुरझाई नहीं
ठीक उस याद की तरह
जिसे बीते ज़माने होगये
पर आज भी जब ज़हन में आती है
इक हलकी मुस्कान दीये जाती है !!!!!!!!!
Copyright (c) Ashit Ranjan panigrahi 2011
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