Wednesday, May 23, 2012





चलो शायरी को बचाएं 



ग़ज़ल, नज़्म, शेर-ओ-शायरी 

न कोई लिखने वाला बचा 

न कोई सुनने वाला रहा 

लिखे भी तो कोई कैसे लिखे 

अल्फाज़ छोटे हो जा रहे हैं 

तशबीह भी गूम होगई है कहीं 

अब शाम को रेशमी नहीं कह सकते 

रात को शबनमी नहीं कह सकते 

चाँद की दुधिया रौशनी जो फीकी पड़  जाती है 

सड़कों पे दौड़ते निओन लाइटों के सामने 

सूरज की सुहानी धुप से पहले 

गाड़ियों का धुआं घर आजाता है 

समंदर हरवक्त बेचैन सा रहता 

साहिल रोज़ अपनी जगह बदल लेता है 

जिस जंगल में जाने से डर लगता था कभी 

वहीँ माकन बना दिए गए हैं 

शायद इसीलिए ख़फ़ा ,

मिसरे कहीं खो गए हैं 




कोई लिखे भी तो कैसे लिखे 

श्याही ख़त्म होने लगी है 

ख़याल  गूम होते जा रहे हैं 




कल नुक्कड़ पे किसीने सच ही कहा था 

बहत बदल चुकी है ये दुनिया 

अब और बदलने वाली है 

शायरी की तो बात ही छोडो 

कहानी ख़त्म होने वाली है 

बचा सको तो बचा लो 

गजलों को, शेरो को, नज्मो को 

शायद इसीतरह यह दुनियां बच जाये !!


Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011

Saturday, May 5, 2012

कुछ देर और ठहर जाओ



कुछ देर यूँ ही रहने दो


एहसास मेरे होने का


कई दिनों से सांस तलक नहीं मिली है मुझे !




कुछ देर यूँ ही रहने दो रवानगी को


रुकी हुई सी, ठहरी हुई सी ज़िन्दगी


बहत डराती है हमे !




कुछ देर यूँ ही रहने दो


तुम्हारे आँचल का साया मुझपे


के मेरा वजूद तो बस इसीसे मिलता है


तुम्हारे होने या न होने से,


सच में बहत फर्क पड़ता है


पास होती हो तो


हर सांस को मायने मिलते हैं


दूर हो जाती हो तो लगता है


जैसे ज़िन्दगी चलिगायी !




बड़ी दिनों बाद आई हो,


मिलने मुझसे


कुछ देर और ठहर जाओ


सदियों से बेजान पड़ा था मैं


चाँद लम्हे मुझे भी जीने दो!!


Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2012

सुपर पावर

धुप में झुलसता हुआ वो बच्चा


जाने कितनी दूर चला


कई रास्ते तय किए उसने,


पर मंजिल उसे फिर भी न मिला


एक रोटी की तलाश थी शायद


मांगने पर बस फटकार मिली


कहीं से गाली तो,


कहीं पर मार मिली


कुछ "इण्डिया शाइनिंग" कह रहे थे


कुछ का हाथ गरीबों के साथ रहा था


पर कहाँ थे यह लोग उस वक़्त


जब भूक से वो बछा तड़प रहा था


जब आंसूं भी थक गए प्यास बुझाकर


वो रात सड़क के किनारे सो गया


सुबह अख़बार में ये खबर आई


शेहेर में एक लारिस लाश मिला





कुछ देर लोगों ने चर्चा की


फिर सबकुछ शांत हो गया


और यूँ लावारिश लाशों पे चलकर


भारत "सुपर पावर" बनगया !!!


Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2012

नयी दुनियां

चलो कुछ ऐसे कदम उठाएं


हर साज़ पर नया तराना बने


लहू से तो सीचें हैं धरती हमने


चलो सासों से ज़िन्दगी सिंची जाये


बहत हो चूका बिस्तर पे,


सुबह का इंतज़ार


चलो आज ऐसा करें,


सूरज को जगाया जाये


मैं यह नहीं कहता के वो दुनियां,


कभी आयेगी नहीं


पर नयी दुनियां के लिए


कुछ तो किया जाये


छोड़ रखे हैं पेड़ों पे ,


फल पकने के लिए


चलो आज यूँ करें बगीचे को संवारा जाये ................






वो दिन अब आगये हैं यारों


के चौखट से निकले कदम


और चौराहे पे हक माँगा जाये !!


Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2012

गुजरने के इंतज़ार में

भीगी आँखों से कुछ तुमने कहा था

भीगी पलकों से कुछ मैंने सुना था

उस एक लम्हे ने,

ज़िन्दगी के मायने बदल डाले

कभी फुर्सत हो, तो आकर देखलेना

वो लम्हा आज भी रुका हुआ है वहीँ

गुजरने के लिए बेताब,

तुम्हारे इंतज़ार में !!


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अकेलापन

यूँही लम्हों को तराशते रहता हूँ

अपनी तन्हाई में ......

कोशिश करता हूँ,

काश ! कोई तकदीर बन जाये

काश ! कोई ज़िन्दगी मिल जाये

या जुड़ जाये कोई रिश्ता अनजाना सा

पर हासिल कुछ नहीं होता

मेरी इस कोशिश से

मेरा अकेलापन भी मुझसे कतराता

मेरी तन्हाई में ..............


पर क्या शिकवा करूँ किसी गैर से




मेरी तो अपनी परछाई भी साथ छोड़जाती है

दिन ढल जाने के बाद !!


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हकीकत का सामना

परवाज़ के पीछे दौड़ता है कोई

चाँद हथेली पे रखता है कोई

हसलों की बातें करता है कोई

अरमानों की कहानी सुनाता है कोई

आगाज़ होता है कुछ यूँ दिन उसका

कुछ इसकदर दिन बुझाता है कोई



खुली आँखों से सपने देखता है कोई

शायद पतझड़ से उसकी, मुलाकात नहीं हुई !!


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भूला हुआ सा रिश्ता

एक पुराने तस्वीर को फ्रेम में सजाकर

टांग दिया है दीवार पे

आते-जाते देख्लेता हूँ

याद करलेता हूँ एक भूले से रिश्ते को

अनकही सी रहगयी जो मेरेलिए

अनचाही सी थी शायद,

हमेशा से तुम्हारे लिए

खैर, पुरानी बातों को छोडो इनसब में रखा ही क्या है

सुना है तुमने कोठी बड़ी अछि बनवाई है ?



मेरी हवेली के रंग तो,

कब के उतर गए

पुरानी दीवारें भी ;अब जवाब देने लगी हैं !!


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Thursday, May 3, 2012

धुंदली यादें

कुछ दिन होगये ढूंड रहा हूँ

वो अल्फाज़ और मिसरे

तेरा ज़िक्र करते हुए जिसे में

गुनगुनाया करता था

यहीं तो रखा था कहीं !

ख्यालों के किसी कोने में

पहले हर वक़्त मिला करते थे

अब कुछ दिन होगये मुलाकात नहीं हुई



धीरे धीरे उम्र बढ़ रही है

धीरे धीरे धुंदली हो रही है

तेर याद उम्र के साथ !!

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काश !

कभी कुछ बन जाता था

कभी कुछ बन जाता था

अरमानो के परों को तोड़

ख्वाबों के सफ्हे जोड़ता था

दोस्त कहते थे

बड़े अछे ख्वाब बुन्लेता हूँ मैं

अब तो बस किस्से हैं

फुरसत में सुनाने के लिए !




बचपन के दिन क्या बीते

ख्वाबों के घर टूट गए

न बंधने के लिए कोई गांठ बची

न जोड़ने के लिए कोई सिरा रहा !!



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२०१२

कहते हैं के दुनियां बहत जल्द ख़त्म हो जाएगी

इंसानियत की हस्ती मिट जाएगी

क़यामत का दिन नजदीक है

एक सैलाब उठेगा

और समां जायेगा सब कुछ उसके अन्दर

ख़त्म हो जाएगी ये धरती,

यह नज़ारा यह दुनियां ,

सब कुछ ख़त्म होजाएगा



कोई मुझे यह तो बताए

ख़त्म होने के लिए

इस दुनियां में बचा ही क्या है

मैं तो रोज़ देखता हूँ चौराहे पे

इंसानियत को मरते हुए !!


Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011

कुछ तो था

कुछ तो था दूर उस जगह

मेरे घर से जिसे में

बचपन में देखा करता था

याद नहीं आ रहा

उनका चेहरा आज मुझे

कहते हैं,

वो बादलों के दोस्त हुआ करते थे

कहने से उनके बारिश हुआ करती थी

फसलें पका करती थीं

मिटटी भीगा करती थीं

मार डाला कातिलों ने उन्हें

बड़ी बेरहमी के साथ जब वो आये थे

वीरान हो गयी है वो जगह अब

कहते हैं,

क़त्ल से नाराज़ उनके

अब बदल नहीं बरसते




याद आगया कुछ पेड़ वहां पर

हुआ करती थी

इन्सान की मदद करते हुए

इन्सान के ही हाथों

शहादत मिल गयी उन्हें !!


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बारिश

सोचा था कुछ ऐसा करूँगा

सोचा था कुछ वैसा करूँगा

कुछ यूँ नाचूँगा,

कुछ यूँ गाऊंगा

ऐसे चिल्लाऊंगा

वैसे कहूँगा

जी भर जियूँगा

जी भर भिगुंगा

कब वो आई

कब चली गयी

कुछ पता न चला

अरमान बस दिल में

अरमान बनके रहगये




विसाले बारिश की मुद्दत

कुछ इसकदर छोटी रह गयी !!

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यादों की किताब

पलट कर देखा,

आज फुर्सत के लम्हों में

ज़िन्दगी की किताब को

तो मिले मुझे कुछ पन्ने

तेरे अल्फाजों से लिखे हुए

यादों की धुल उन पर चढ़ चुकी थी

वक़्त की अंधी के साथ लड़ते हुए वो पन्ने

कुछ कमज़ोर से होगये थे

ज़हन की तिजोरी में बंद उस किताब को

जीने के बाद कुछ लम्हे

फिर से वहीँ रख दिया

ज़हन की महफूज़ तिजोरी में !!

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इंतज़ार

सुबह सुबह आँगन में पड़ने वाली,

पहली धुप के साथ ही

हमने तेरा इंतज़ार शुरू कर दिया

मेज़ पर दो प्याली चाय की रख

इक ही अख़बार को कई बार पढलिया

पल, घंटों में तब्दील होगये

सुबह, दोपहर, रात होगई

न तेरी आमद हुई

न असबाब -ऐ-तागाफूल तेरा मालूम चला

बस इंतज़ार ही तेरा

करते रह गए ज़िन्दगी !!!!!!!!!


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हासिल-ऐ-हयात

नीम रोज़ सेहरा में बैठे

ख्वाब ढूंड रहा हूँ

कुछ बिछड़ कर खो गए

चंद टूट बिखर गए

फिर भी उन्हें ढूंड रहा हूँ



ख्वाब ही हें मकसद जीने का

उनके सिवा,

हासिल-ऐ-हयात बचा ही क्या है !!!!


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किस्मत

आज भी चुपके देख लेता हूँ

कहीं नज़र आजाये वो तो

ज़ाहिर नहीं होने देता अपनी मौजूदगी उसे

गीला नहीं कोई उस हसीं चेहरे से

उसकी मर्ज़ी थी उसने सुना दिया

मेरी किस्मत है

मैं जिए जा रहा हूँ !!

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दीदार

कुछ यूँ भी हो सकता था

कुछ और भी हो सकता था

रहें कुछ आसां,

ख्वाब कुछ हसीं,

हो सकते थे


पर हमने तो बस

तेरा दीदार ही माँगा था तौफिक में अपने

और उसी लम्हे को ज़िन्दगी समझ

आज तलक जिए जा रहे हैं !!



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सच बताना !

अपने सुरूर में हवा बह रही थी

कलियाँ शर्म से

सर झुकाए खड़ी थी

कोयल बैठी थी डाल  पे ज़रूर

पर उसके गले में,

आवाज़ नहीं था

फलक खुशरंग दिखने लगा था

ज़मीं मदहोश होने चली थी

सच बताना,

क्या तुम कल उस रास्ते से गुजरी थी ?


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ख्वाबों के घरोंदे

हुकूमत-इ-नादाँ से पूछो तो कोई

इनसे मुझे मिला क्या है

कोई इन बन्दों से पूछो तो सही

मुझसे इनका गिला क्या है

चुप चाप हर मंज़र देखता रहा

खामोश लफ़्ज़ों को सुनता रहा

वो बस वायेदा करते रहे

मैं ख्वाबों के घरोंदे बनाता रहा !!!!!


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-----------याद----------------

आज भी तकिये तले

इक किताब के सफहों के दरमियाँ

उस फूल को सजाये रक्खा है मैंने

सूख ज़रूर गयी है लेकिन

आज तलक मुरझाई नहीं

ठीक उस याद की तरह

जिसे बीते ज़माने होगये

पर आज भी जब ज़हन में आती है

इक हलकी मुस्कान दीये जाती है !!!!!!!!!


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बाज़ार

इतनी भी क्या जल्दी बिकने की

ज़िन्दगी अभी और भी है

खरीददार भी मिलेंगे बहत

बाज़ार अभी और भी है ..............................

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बहस !!!!

न कभी तुम

मेरी बात सुनोगे

न कभी मुझे

अपनी जमात में

शामिल कर पाओगे

बस, दोनों के बिच

एक बहस चलती जाएगी

मैं अपनी कहता रहूँगा

तुम अपनी सुनते जाओगे !!!

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दो रंग दुनिया के

बेतहाशा आती आवाजों ने

मुझे अपनी और खिंचा

तब मैंने घर की छत से

नज़ारा किया एक ऐसे असमान का

जिसे रंगबिरंगी रौशनी जगमगा रही थी

रात का अँधेरा,

कमज़ोर हो रहा था

अचानक मेरी ऑंखें

फलक से निचे हटी

और मैंने देखा

मेरे घर के बगल में

एक बस्ती थी

जहाँ,

चुल्ह्हे ठन्डे

और इन्सान मायूस सा पड़ा था !!!!!!!!

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मैं अवाम हूँ

आज़ादी के मायने मुझे क्या पता

मैंने तो बस गुलामी देखि है

पहले वो हुकूमत करते थे

अब ये हुकूमत करते हैं

फर्क है तो बस रंग का

वो गोरे हुआ करते थे यह सांवले नज़र आते हैं !!



उनको मैं ने चुना नहीं था

यह तो मेरी मर्ज़ी से आए हैं

वो भी ज़ुल्म करते थे

यह भी ज़ुल्म करते हैं

फर्क है तो बस लहजे का

वो सामने से सामने वार करते थे

यह छुपके वार करते हैं !!



वो भी आए थे तिजोरी भरने

इनका भी इल्म येही है

वो भी मुझे लूटते थे

यह भी मुझे लूटते हैं

फर्क है तो बस नाम का

वरना वो भी लगान लेते थे

यह भी लगान लेते हैं !!



तब भी मरता था मैं

आज भी जल रहा हूँ

वो भी मुझे बांटते थे

यह भी मुझे बांटते हैं

फर्क है तो बस इतना सा

वो गैर हुआ करते थे

यह अपने हुआ करते हैं !!!!!!!!!!

Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi

साहिब MERA

साहिब मेरा देखता रहा


बन्दे सारे बटते गए


रोकने को भी हाथ न उठा


यूँ ही सारे कटते गए



ढूंढने चला जो मैं उसे


मिले न फिर उसके निशां


कहते हैं के जागीर में इनके


उसके निशां खोते गए !!!!