सुबह सुबह आँगन में पड़ने वाली,
पहली धुप के साथ ही
हमने तेरा इंतज़ार शुरू कर दिया
मेज़ पर दो प्याली चाय की रख
इक ही अख़बार को कई बार पढलिया
पल, घंटों में तब्दील होगये
सुबह, दोपहर, रात होगई
न तेरी आमद हुई
न असबाब -ऐ-तागाफूल तेरा मालूम चला
बस इंतज़ार ही तेरा
करते रह गए ज़िन्दगी !!!!!!!!!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011
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