यूँही लम्हों को तराशते रहता हूँ
अपनी तन्हाई में ......
कोशिश करता हूँ,
काश ! कोई तकदीर बन जाये
काश ! कोई ज़िन्दगी मिल जाये
या जुड़ जाये कोई रिश्ता अनजाना सा
पर हासिल कुछ नहीं होता
मेरी इस कोशिश से
मेरा अकेलापन भी मुझसे कतराता
मेरी तन्हाई में ..............
पर क्या शिकवा करूँ किसी गैर से
मेरी तो अपनी परछाई भी साथ छोड़जाती है
दिन ढल जाने के बाद !!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2012
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