चलो शायरी को बचाएं
ग़ज़ल, नज़्म, शेर-ओ-शायरी
न कोई लिखने वाला बचा
न कोई सुनने वाला रहा
लिखे भी तो कोई कैसे लिखे
अल्फाज़ छोटे हो जा रहे हैं
तशबीह भी गूम होगई है कहीं
अब शाम को रेशमी नहीं कह सकते
रात को शबनमी नहीं कह सकते
चाँद की दुधिया रौशनी जो फीकी पड़ जाती है
सड़कों पे दौड़ते निओन लाइटों के सामने
सूरज की सुहानी धुप से पहले
गाड़ियों का धुआं घर आजाता है
समंदर हरवक्त बेचैन सा रहता
साहिल रोज़ अपनी जगह बदल लेता है
जिस जंगल में जाने से डर लगता था कभी
वहीँ माकन बना दिए गए हैं
शायद इसीलिए ख़फ़ा ,
मिसरे कहीं खो गए हैं
कोई लिखे भी तो कैसे लिखे
श्याही ख़त्म होने लगी है
ख़याल गूम होते जा रहे हैं
कल नुक्कड़ पे किसीने सच ही कहा था
बहत बदल चुकी है ये दुनिया
अब और बदलने वाली है
शायरी की तो बात ही छोडो
कहानी ख़त्म होने वाली है
बचा सको तो बचा लो
गजलों को, शेरो को, नज्मो को
शायद इसीतरह यह दुनियां बच जाये !!
Copyright (c) Ashit Ranjan Panigrahi 2011