कुछ यूँ ख़ुदा से मैं दुश्मनी निभाता हूँ
सजदे में सर झुकता है, फरियाद न कोई करता हूं।।
तोड़ता है दिल मेरा बार बार रुलाने लिए
मैं हरबार गम को हंसकर सिने से लगाता हूं ।।
ठुकराई है मेरी मिन्नतें ज़िन्दगी भर
मैं उसी के दर पे, उसकी बेरहमी गिनाता हूं ।।
अब तो साफ़ हो चाला है रिश्ता हमारा
वो अपनी खुदाई दिखाता है, मैं इंसानियत दिखाता हूं ।।
मुक़ाबला दोनों में है बराबर का अबतक, देखते हैं
पहले वो हार मानता है, या मैं हार मानता हूं ।।
Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2014.