बादल हैं के बरसते नहीं
हवा खुसबू बिखेरती नहीं
कोई कलि कहीं खिलती नहीं
चिड़िया गीत गाती नहीं
इंतज़ार में हैं तेरी मुस्कराहट का
जिसके बिना ज़माने में बाहर आती नहीं !!
ग़ज़लें लिख लिख श्याही ख़त्म हो जाए
मिसरे पढ़ पढ़ अल्फ़ाज़ सारे
पर तेरा जिक्र ही काफी है
और यह शाम कभी फिर ढलती नहीं !!
इबादत-ऐ-यार है, महफ़िल-ऐ-ज़िन्दगी में
और क्या है ?
कब्र में हम पड़े हैं
और उनकी आरज़ू में जान है की जाती नहीं !!
Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2014
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