Monday, September 29, 2014

यादों की मजारें 


कोरे कागज़ सा हो चूका हूं 

एहसास नहीं उठते दिल में 

कुछ कहना चाहूं  भी तो ,

अल्फ़ाज़ कतराते हैं मुझसे 

कभी गुनगुनाता था तन्हाई में जिन्हें 

याद तो आते हैं मगर 

कैद नहीं कर पाता  श्याही में उन्हें 

बस बैठा ताकता रहता हूं 

मेज़ पर पड़े सादे कागज़ को 

कोई पूछे तो कह्देता हूं 

नज़्म जो हुआ करते थे कभी 

आज बस यादों की मजारें हैं !!


Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2013

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