Tuesday, September 30, 2014

नादान




जैसे कोई दस्तक दे रहा है

कुछ इसकदर गूंज रहे हैं सन्नाटे

संग मेरे आज की रात भी तन्हाई की दोस्ती है।।


सोचा चांद को  लेलूं

पर वो सितारों से मशरूफ है

सोचा कोई किताब पढ़लूं 

पर हर सफ़्हा आज हम से बेऱूख है ।।


नींद कहीं गुमशुदा है,

दिल कहीं खामोश है

एक मैं हूं और मेरा खाली सा माकन

दोनों फिर तनहा हैं,

दोनों फिर अकेले हैं ।।


दीवारें भी बातें नहीं करती

उनकी भी तबियत कुछ बदगुमान है ।।


आओगे एक दिन मिलने मुझसे

यकीन में है मेरा दिल

क्या करें,

येः कल भी नादान था,

येः आज भी नादान है ।।


Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2014.

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