Tuesday, September 30, 2014

मैं क्या करूं



तारीफ करूं  तो कहता है झूठी करते हो

न करूं तो क़यामत हो

मैं क्या करूं ?

नए किताब के पहले पन्ने की तरह

रोज़ नया लगता है मेरा यार

मैं क्या करूं ?


ओस की चादर में तब्बस्सुम, ऐसी उसकी हंसी

उफ़ुक़ से निकलते चांद  सी उसकी सूरत

मैं क्या करूं ?

पहली बारिश में भीगी मिट्टी

सोंधी सी खुशबू उसकी याद दिलाए

मैं क्या करूं ?


बातें ऐसी की तराना बन जाए

चाल ऐसी की तरन्नुम शर्माजाए

मैं क्या करूं ?

मैं  गुनगुनाऊँ तुझे

या लिखदूं तुझपे कोई ग़ज़ल

मैं क्या करूं ?


ज़माना कहता बनजाओगे मजनू,

जूनून-ऐ-उन्स में

कुछ तो  करो

मैं कहता

मेरा यार है ही इतना दिलकश

मैं क्या करूं ?


Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2014.

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