तारीफ करूं तो कहता है झूठी करते हो
न करूं तो क़यामत हो
मैं क्या करूं ?
नए किताब के पहले पन्ने की तरह
रोज़ नया लगता है मेरा यार
मैं क्या करूं ?
ओस की चादर में तब्बस्सुम, ऐसी उसकी हंसी
उफ़ुक़ से निकलते चांद सी उसकी सूरत
मैं क्या करूं ?
पहली बारिश में भीगी मिट्टी
सोंधी सी खुशबू उसकी याद दिलाए
मैं क्या करूं ?
बातें ऐसी की तराना बन जाए
चाल ऐसी की तरन्नुम शर्माजाए
मैं क्या करूं ?
मैं गुनगुनाऊँ तुझे
या लिखदूं तुझपे कोई ग़ज़ल
मैं क्या करूं ?
ज़माना कहता बनजाओगे मजनू,
जूनून-ऐ-उन्स में
कुछ तो करो
मैं कहता
मेरा यार है ही इतना दिलकश
मैं क्या करूं ?
Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2014.
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