धीरे से कदम रखना मंज़िल पर
ज़रा आहिस्ता से चलना
बड़े ही कच्चे माकन हैं इस शहर के
कहीं चाप सुनकर कोई घरौंदा न टूट जाए ।।
संभलके छानकर हर बात कहना
कहीं बातों से कोई दिल न टूट जाए ।।
हिसाब रखते हैं मुलाकातों का
कहीं मुलाकत में ही सारी कमाई न निकल जाए ।।
बड़े ही नाज़ुक होते हैं मरस्सिम के धागे
गिरह खोलने में कोई धागा न टूट जाए ।।
मैंने तो खुला छोड़ा है अपनी तिजोरी को
वो डर रहे हैं कहीं यादें न चोरी हो जाए ।।
हाथ मिलाया तो शहर से निकाले गए
उन्हें लगा होगा,
ज़रुरत की भीड़ कहीं कोई दोस्त न बन जाए ।।
चेहरे हैं चरों तरफ, बस चेहरे हैं
हम ढूंढ़ते इन चेहरों में कहीं कोई इंसान मिल जाए ।।
Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2014.
No comments:
Post a Comment