Tuesday, September 30, 2014

दिल की बातें



सोचते थे दिल की बातें बस दिल से होती है

नामालूम था यहाँ बस लिबास की कीमत होती है ।।


तौलते हैं आरज़ूओं को दौलत की तराज़ू में

इनके लिए तो बस यही  हासिल होती है  ।।


माकन देखते हैं रहनेवाले को नहीं

रिश्ते भी यहाँ दीवारों सी होती है  ।।


बचालेता हूँ खुद को ओढ़ कर हिजाब

रोज़ मैं होता हूँ और रूबरू मौत होती है ।।


ग़र जानलेता निज़ाम, न आता दुनियां में

ज़िंदगी यहां तो बड़ी ख़ुदग़र्ज़ होती है ।।


क्यों बेच रहा है खुद को बाज़ार में खड़ा "आशित "

क्या ज़माने में कभी इंसान की कीमत होती है ।।


Copyright (C) Asit Ranjan Panigrahi 2014.

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