वो तेरा बेबाकी से कहना
वो मेरा दिल्लगी से सुनना
बहत याद आता है हमे
वो बेमतलब की बातें सुनना
फ़साने सुनाएंगी बहत सी हमारी
कभी फुर्सत में इन दर-ओ-दीवारों को सुनना
आ जाओ लौट कर, ख़ामोश हो जाएं सभी
बस बहत हो गया ज़माने के ताने सुनना
समझ नहीं पाते पागल कहते मुझे
अखडता है इन्हें मेरा बज़्म में ख़ामोशी सुनना
रात अकेले चांद के साथ गुज़ारता हूं
अच्छा लगता है तन्हाई में तन्हाई को सुनना
बड़े दिनों बाद मिले और ख़ामोश हो आशित
बड़ी बुरी आदत है ये, ना अपनी कहना, ना मेरी सुनना
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