Wednesday, April 6, 2016

वो तेरा  बेबाकी से कहना 
वो मेरा दिल्लगी से सुनना 


बहत याद आता है हमे 
वो बेमतलब की बातें सुनना 


 फ़साने सुनाएंगी बहत सी हमारी 
कभी फुर्सत में इन दर-ओ-दीवारों  को सुनना 


आ जाओ लौट कर, ख़ामोश हो जाएं  सभी 
बस बहत हो गया ज़माने के ताने सुनना 


समझ नहीं पाते पागल कहते मुझे 
अखडता है इन्हें  मेरा बज़्म में ख़ामोशी सुनना 


रात अकेले  चांद  के साथ गुज़ारता हूं 
अच्छा लगता है तन्हाई में तन्हाई को सुनना 


बड़े दिनों बाद मिले और ख़ामोश हो आशित 
बड़ी बुरी आदत है ये, ना अपनी कहना, ना मेरी सुनना 


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