Wednesday, April 6, 2016

दिन गुज़र जाता है मग़र करार नहीं मिलता 
इस भीड़ में कोई चेहरा तेरे चेहरे से नहीं मिलता 


आईना भी मायूश खड़ा है आज 
मेरे अक्स से जो मेरा चेहरा नहीं मिलता 


कभी जो हुआ करते थे रौनक- ए - महफ़िल हमारे 
आज यादों में भी उनका साया नहीं मिलता 


कहते थे ज़िन्दगी जिन निगाहों को कभी 
आज उस चेहरे का कहीं दीदार नहीं मिलता 


ज़िन्दगी है, सांसें हैं, जी रहे हैं 
बस कभी चैन नहीं मिलता, कभी करार नहीं मिलता 


आशित ये खाव्ब फरेबी हैं इतना जानले 
कभी ये तुझे नहीं मिलते, कभी तू इनको नहीं मिलता 




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