तू मुनफ़रिद यक्ता है मैं मानता हूं
उसके फितरत का करिश्मा है मानता हूँ
इंतहा-ए -इश्क़ का सम्त है तू
तेरे शखावत का मुंतज़िर हूं मानता हूं
जो शहर सारा दीवाना हुआ बैठा है
उस मग़रूर -ए - यार को जानता हूं
बहत बेबाक हैं तेरे निगाहों के खनजर
मैं मौत को तैयार, ये मानता हूं
वो कहते हासिल-ए -महताब है नामुमकिन
पर हारने से मैं कहां मानता हूं
तू पाक है आब -ए -अब्र की तरह
मैं खाक हूं ज़मीन हूं मानता हूं
गोया वस्ल है मुश्किल लोग कहते
तू भी बेरुख मुझसे, ये भी मानता हूं
तू यकीन में है अपने दिल की मगर
मैं एजाज़ - ए - शिद्दत - ए - मोहब्बत मानता हूं